मेरी जीवन संगिनी
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मेरी रूह की तलब हो तुम ,
फिर मैं यह कैसे कह दूं कि ;
मुझसे अलग हो तुम !
जिन्दगी की हर शुरूआत की ,
छांवयुक्त पड़ाव हो तुम ।
मेरी जीवन संगिनी हो तुम ।
जिन्दगी गुजार दूंगा ,
तेरी प्यार की रेशमी छांव मे ।
कभी ढीली पडने नही दूंगा
तेरे साथ बंधे जन्मों के गांठ में ;
क्योंकि मेरी जीवन संगिनी हो तुम ।
जिन्दगी की हर एक डगर पर ,
साथ- साथ चलकर मंजिल की
हर एक सफर करेंगे आसान ।
मेरा हीं नूर हो तुम ,
मेरा हीं गुरूर हो तुम ;
इसलिए मेरी जीवन संगिनी हो तुम ।
कांटो पर भी बड़े प्यार से चलने की ,
बहुत खूबसूरत- सा तरकीब हो तुम ।
मझधार में डूबे मेरी जीवन की नैया को ,
प्यार से चलाने की पतवार हो तुम ।
इसलिए मेरी जीवन संगिनी हो तुम ।
नोंक झोंक से भरी लच्छेदार बातों का ,
नमकीन - सा सिलसिला हो तुम ।
गमों के गुब्बारों के बीच में भरी ,
सुनहरी कारणों की आस हो तुम ;
इसलिए मेरी जीवन संगिनी हो तुम।
सुख और दुःख में हरदम साथ हों तुम ,
अपने हो या पराए हो ;
उन सभी में सबसे खास हों तुम ।
खट्टे मीठे और तीखे अनुभवों का
हरपल का अहसास हो तुम
इसलिए मेरी जीवन संगिनी हो तुम।
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;;;;;;; सुरेश शर्मा :;;;;,,,
शंकर नगर , नूनमाटी
गुवाहाटी (आसाम)